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भारत की राजधानी दिल्ली में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दोहा दौर की बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए बुलाई गई बैठक बिना किसी ठोस नतीजे पर पहुँचे ख़त्म हो गई है.
अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, युरोपीय संघ के देशों और ब्राज़ील समेत तीस प्रमुख देशों की दो दिवसीय बैठक में दोहा दौर की वार्ता को अगले वर्ष अंजाम तक पहुँचाने के लिए एजेंडा नहीं बन सका.
असहमति उन्हीं मुद्दों पर रही जो पिछले कुछ वर्षों से डब्ल्यूटीओ वार्ताओं में रोड़ा अटकाती रही है.
जहां भारत समेत विकासशील देशों ने धनी देशों में किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर सवाल उठाए, वहीं विकसित देशों की माँग थी कि विकासशील देश औद्योगिक सामानों पर आयात शुल्क कम करें.
असहमति की झलक भारतीय उद्योग मंत्री आनंद शर्मा और डब्ल्यूटीओ के प्रमुख पास्कल लामी के बयानों से साफ़ झलक रही थी.
आनंद शर्मा ने स्पष्ट किया कि अगले साल दोहा दौर को अंजाम तक पहुँचाने के लिए डब्ल्यूटीओ को काफ़ी काम करना बाकी है.
दूसरी ओर पास्कल लामी और ऑस्ट्रेलियाई व्यापार मंत्री साइमन क्रीन का कहना था कि जिन मुद्दों पर पहले सहमति बन चुकी है, उन पर दोबारा चर्चा की ज़रूरत नहीं है और अब 'आख़िरी वार्ता' होनी चाहिए.
असहमति
भारत में किसानों ने डब्ल्यूटीओ की बैठक का विरोध किया.
आनंद शर्मा का कहना था, "अब हमारे पास कुछ विचार आ गए हैं जिनके आधार पर हम बातचीत को तेज़ कर सकते हैं लेकिन बहुत सारे तकनीकी कार्य बचे हुए हैं."
उन्होंने लामी से असहमति जताते हुए कहा कि 'आख़िर चरण' में प्रवेश करने से पहले बहुत लंबा सफ़र तय करना बाकी है.
दोहा दौर की बातचीत वर्ष 2001 में शुरु हुई थी. इसका मकसद सदस्य देशों के बीच शुल्क मुक्त व्यापार व्यवस्था को बढ़ाना है.
पिछले साल जुलाई में जिनेवा में हुई बैठक असफल रही थी लेकिन इस बीच अमरीका और भारत में नई सरकार के सत्ता में आने से फिर उम्मीद कायम हुई.
जिनेवा की असफलता के लिए भारत को मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार माना गया जिसने अमरीका में कृषि सब्सिडी पर सख़्त आपत्ति जताई थी.
इसी महीने रूस के पीट्सबर्ग में धनी और विकासशील देशों के संगठन जी-20 की बैठक होनी है और दिल्ली में हुई बैठक को इसी की तैयारी के रूप में देखा जा रहा था.
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