श्रीलंका के मज़दूर संघों का कहना है कि चायबाग़ान के लगभग ढाई लाख कर्मचारी बेहतर वेतन की मांग को लेकर चलाए जा रहे असहयोग अभियान में हिस्सा ले रहे हैं.
देश के तीन बड़े मज़दूर संघों द्वारा आयोजित इस असहयोग अभियान को हड़ताल नहीं माना जा रहा है क्योंकि इस असहयोग अभियान के अंतर्गत कर्मचारी चाय की पत्तियां तोड़ रहे हैं लेकिन उन्हें बागान से बाहर नहीं जाने दे रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि चीन, भारत और कीनिया के बाद श्रीलंका दुनिया का चौथा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है लेकिन आर्थिक मंदी के असर से श्रीलंका के चाय बाग़ान भी नहीं बचे हैं.
इसके अलावा चाय उत्पादक इलाकों के सूखे का शिकार होने के कारण भी चाय की खेती पर बुरा असर पड़ा है.
चाय बाग़ान मज़दूर इस असहयोग आंदोलन के ज़रिए अपनी रोज़ की आमदनी में लगभग दोगुनी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं.
चाय बाग़ान के तमिल मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल सीलोन वर्कर्स कांग्रेस के नेता रमैया योगराजन का कहना है, “ चाय बाग़ान के ग़रीब मज़दूरो की संख्या देश में सबसे ज्यादा है.1992 में चाय उद्योग के निजीकरण के बाद से 2002 तक मज़दूरों की ग़रीबी 22 प्रतिशत से बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई इसलिए मज़दूरों की आमदनी का मुद्दा अब काफी गंभीर हो चला है.”
श्रीलंका के चाय व्यापारियों की संस्था ने चिंता व्यक्त की है कि मज़दूरों के इस असहयोग से चाय के उत्पादन और निर्यात पर असर पडेगा. दूसरी ओर मज़दूर संघों ने इस बात पर ख़ुशी ज़ाहिर की है कि इस आंदोलन के ज़रिए वो चाय बाग़ान के मालिकों का ध्यान इस ओर खींचने में सफल हो रहे हैं.
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